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Bharat has lost its Ratna -- NaMo Oped

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UPDATE: Bharat has indeed lost its Ratna: PMUpdated on : 29-07-2015 09:01 AM
PM Narendra Modi paid a glowing tribute to former President APJ Abdul Kalam in an op-ed article shared with leading dailies including Hindustan Times, Times of India and Dainik Jagran calling him his 'marg darshak' or guide who epitomised the values of self-restraint, sacrifice and compassion.


हम मिलकर पूरा करेंगे कलाम का सपना : नरेंद्र मोदी

Publish Date:Wed, 29 Jul 2015 01:31 AM (IST) | Updated Date:Wed, 29 Jul 2015 07:46 AM (IST)


नरेंद्र मोदी: एपीजे अब्दुल कलाम के रूप में भारत ने एक हीरा खो दिया है। लेकिन उस हीरे की चमक और रोशनी हमें उस मंजिल तक पहुंचाएगी, जो उस स्वप्नद्रष्टा ने देखी थी। उन्होंने ख्वाब देखा था कि भारत एक नालेज सुपरपावर (ज्ञान शक्तिपुंज) के रूप में पहली कतार के देशों में शुमार हो।

हम उस लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे। वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से चलकर राष्ट्रपति पद तक पहुंचे कलाम सच्चे मायनों में जनता के राष्ट्रपति थे और यही कारण था कि उन्हें जनता से अथाह प्यार और सम्मान मिला और शायद उनके लिए सफलता का अर्थ भी यही था।
उनकी हर कथनी-करनी में इसी की झलक मिली। गरीबी से लड़ने का उनका हथियार था ज्ञान और इसे फैलाने में उन्होंने कभी कोई कसर नहीं छोड़ा। रक्षा कार्यक्रम के वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने क्षितिज को पार किया तो एक सच्चे संत के रूप में उन्होंने बताया कि सद्भाव का आकाश सबसे बड़ा है।
यथार्थ पर टिका था उनका आदर्शवादहर बड़ी शख्सियत का जीवन एक प्रिज्म की तरह होता है। रोशनी उससे होकर गुजरती है तो हम पर सतरंगी किरणों की वर्षा होती हैै। कलाम का आदर्शवाद यथार्थ के आधार पर टिका था। सही मायनों में हर वंचित बच्चा यथार्थवादी होता है। गरीबी से भ्रम पैदा नहीं होता है।
गरीबी एक ऐसी डरावनी विरासत है जिसके बोझ तले बच्चा सपना भी नहीं देख सकता है। वह उससे पहले ही परास्त हो जाता है। लेकिन कलाम जी को परिस्थितियों से हार मानना स्वीकार नहीं था। उनका बचपन भी कठिन था। अपनी पढ़ाई के लिए उन्होंने अखबार भी बेचा। आज सभी अखबार उनकी याद और श्रद्धांजलि से पटे पड़े हैैं।
उन्होंने कभी खम ठोककर यह नहीं कहा कि उनका जीवन दूसरों के लिए रोल माडल है, लेकिन यह सच्चाई है कि उनसे प्रेरणा लेकर गरीबी और अंधकार से भ्रमित और ग्रसित किसी असहाय बच्चे को बाहर निकलने में मदद मिल सकती है। कलाम मेरे मार्गदर्शक हैैं। उसी तरह जैसे हर बच्चे के।
चापलूसी कभी रास नहीं आईउनका आचरण, समर्पण और उनकी प्रेरणादायी सोच उनके पूरे जीवन से प्रस्फुटित होती है। अहं उन पर कभी हावी नहीं हो सका और चापलूसी कभी रास नहीं आई। हाई प्रोफाइल मंत्री हों या उच्च सामाजिक वर्ग के श्रोता या फिर युवा छात्र, उन पर इसका कभी कोई फर्क नहीं दिखा।
वह हर किसी के लिए एक समान थे। उनके व्यक्तित्व में अदभुत बात थी- वह था एक छोटे बच्चे की ईमानदारी, युवा होते एक बच्चे का उत्साह और एक वयस्क की परिपक्वता का मिश्रण। यह हर क्षण उनके व्यक्तित्व में झलकता था। संसार से उन्होंने जो कुछ लिया वह पूरा समाज पर लुटा दिया। गहरी आस्था रखने वाले कलाम हमारी सभ्यता के तीनों गुण - दम(आत्म नियंत्रण), दान और दया से भरपूर थे।
व्यक्तित्व में थी प्रयत्नशीलता की आगलेकिन इस व्यक्तित्व में प्रयत्नशीलता की आग थी। राष्ट्र के लिए उनकी दृष्टि का निर्माण स्वतंत्रता, विकास और शक्ति के तीन स्तंभों पर हुआ था। हमारे इतिहास में स्वतंत्रता का मतलब राजनीतिक स्वतंत्रता से है। परंतु इसमें वैचारिक व बौद्धिक स्वतंत्रता भी शामिल है। वह भारत को विकासशील देश से विकसित राष्ट्र के रूप में परिवर्तित होते और समवेत आर्थिक विकास के जरिये गरीबी को समाप्त करना चाहते थे।
चाहते थे 70 फीसद समय विकास में लगाएं नेताइसीलिए उन्होंने कहा था कि नेताओं को केवल 30 फीसद समय राजनीति में और 70 फीसद विकास में लगाना चाहिए। वह अक्सर सांसदों को बुलाकर उनके साथ उनके क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं पर चर्चा किया करते रहते थे।
उनके मुताबिक, राष्ट्र की शक्ति का तीसरा स्तंभ यानी क्षमता केवल आक्रामकता से नहीं, बल्कि समझ विकसित करने से मजबूत होता है। एक असुरक्षित राष्ट्र शायद ही कभी समृद्धि के रास्ते पर जा सकता है। शक्ति से सम्मान प्राप्त होता है। हमारी नाभिकीय एवं अंतरिक्ष संबंधी उपलब्धियों में उनके योगदान ने ही भारत के अंदर विश्व में उचित स्थान पाने की शक्ति व भरोसा पैदा किया है।
पेड़ों में कविता देखते थे कलामहम ऐसी सर्वश्रेष्ठ संस्थाएं खड़ी कर उनकी याद को सम्मान दे सकते हैं जो विज्ञान एवं तकनीक को बढ़ावा देती हों और प्रकृति की आश्चर्यजनक शक्ति के साथ तादात्म्य स्थापित करने में हमारी मदद करें। अक्सर हम लालच के वशीभूत होकर प्रकृति का शोषण करने लगते हैं। लेकिन कलाम जी को पेड़ों में कविता, जबकि पानी, हवा और सूरज में ऊर्जा दिखाई देती थी। हमें अपनी दुनिया को उनकी आंखों और उन्हीं के जैसे उत्साह से देखने का अभ्यास करना होगा।
वह हर भारतीय बच्चे के थे पितामनुष्य अपने जीवन को अपनी इच्छा, संकल्प, क्षमता और साहस के अनुसार संचालित कर सकता है। परंतु उसे अपने जन्म का स्थान और मृत्यु का समय तय करने का अधिकार नहीं मिला है। परंतु यदि कलाम जी को यह अधिकार मिलता तो अवश्य ही वह कक्षा में अपने प्रिय छात्रों को पढ़ाते हुए संसार से रुखसत होना पसंद करते। यदि कोई कहता है कि अविवाहित होने के नाते उनके कोई संतान नहीं थी, तो यह सही नहीं होगा।
वस्तुत: वह प्रत्येक भारतीय बच्चे के पिता थे। जिन्हें वह न केवल पढ़ाते और मनाते थे, बल्कि उनका जोश बढ़ाते थे और अपनी दृष्टि की आभा और स्नेह से उनके भीतर से अज्ञान के अंधेरे को दूर करते थे। उन्होंने खुद भविष्य को देखा और दूसरों को रास्ता दिखाया।
प्रेरणा देगा उनका व्यक्तित्वमैैंने जब उस कमरे में प्रवेश किया, जहां उनका पार्थिव शरीर रखा गया था तो मेरी नजर द्वार के पास लटकी एक पेंटिंग पर पड़ी। उस पर कलाम की किताब इग्नाइटेड माइंड्स की कुछ प्रेरणादायी पंक्तियां लिखी थीं। उनका काम उनके साथ समाप्त नहीं होगा। यह अनंत के लिए है। उनकी प्रेरणा बच्चों के जीवन और काम को दिशा दिखाएगी और फिर आगे उनके बच्चों के लिए भी मार्गदर्शक बनेगी।
http://www.jagran.com/news/national-pm-modis-promise-for-apj-abdul-kalam-12663697.html

Bharat has lost its Ratna

July 29, 2015, 12:01 AM IST  in Narendra Modi's Blog | India | TOI

But Abdul Kalam’s light will guide us to his dream destination: India as a knowledge superpower
Bharat has lost a Ratna, but the light from this jewel will guide us towards A P J Abdul Kalam’s dream destination: India as a knowledge superpower, in the first rank of nations. Our scientist-President — and one who was genuinely loved and admired across the masses — never measured success by material possessions.
For him, the counterpoint to poverty was the wealth of knowledge, in both its scientific and spiritual manifestations. As a hero of our defence programme, he shifted horizons; and as a seer of the spirit, he sought to liberate doctrine from the narrow confines of partisan tension to the transcendental space of harmony.
Every great life is a prism, and we bathe in those rays that find their way to us. His profound idealism was secure because it rested on a foundation of realism.
Every child of deprivation is a realist. Poverty does not encourage illusions. Poverty is a terrible inheritance; a child can be defeated even before he or she has begun to dream.
But Kalamji refused to be defeated by circumstances. As a boy, he had to support his studies by earning money as a newspaper vendor; today, page after page of the same newspapers are filled with his obituary notices.
He said that he would not be presumptuous enough to say that his life could be a role model for anybody; but if some poor child living in an obscure and underprivileged social setting found some solace in the way his destiny had been shaped, it could perhaps help such children liberate themselves from the bondage of illusory backwardness and helplessness.
He is my marg darshak, as well as that of every such child.
His character, commitment and inspirational vision shine through his life. He was unencumbered by ego; flattery left him cold.
He was equally at ease before an audience of suave, globe-trotting ministers and a class of young students. The first thing that struck one about him was that, uniquely, he combined the honesty of a child with the energy of a teenager and the maturity of an adult.
He took little from the world, and gave all he could to society. A man of deep faith, he epitomised the three great virtues of our civilisation: dama, self-restraint; dana, sacrifice; and daya, compassion.
But this persona was powered by the fire of endeavour. His vision for the nation was anchored in freedom, development and strength.
Given our history, freedom had a political context of course; but it also included freedom of the mind and expansion of intellectual space. He wanted India to leap out of the underdeveloped trough and eliminate the curse of poverty through inclusive economic growth.
Wisely, he suggested that politicians spend only 30% of their time on politics, and 70% on development; a suggestion which he often followed up by calling in MPs from a state and discussing the socioeconomic issues of their region with them.
The third pillar, strength, was not born of aggression, but of understanding. An insecure nation will rarely discover the route to prosperity. Strength commands respect. His contributions to our nuclear and space achievements have given India the muscle to be confident of her place in the region and the world.
His memory is best honoured by the creation of new institutions that nurture science and technology, and enable us to find a beneficial equation with the awesome power of nature. Too often, greed makes us predators of our environment.
Kalamji saw poetry in a tree, and energy that could be harnessed in water, wind and sun. We should learn to look at our world through his eyes, and with the same missionary zeal.
Human beings can shape their lives through will, persistence, ability and sheer courage. But we have not been given the right to script where we are born, or how and when we die.
However, if Kalamji had been offered an option, this is how he would perhaps have chosen to say goodbye: on his feet, and in front of a classroom of his beloved students.
As a bachelor, he was childless. But that is wrong. He was a father to every Indian child, teaching, cajoling, urging, exciting, clearing darkness wherever he found it with the radiance of his vision and the passion of his involvement.
He saw the future, and showed the way. As I entered the room where his body lay in state yesterday, I noticed the painting at the entrance that depicted a few lines from an inspirational book he wrote for children, Ignited Minds.
The good that he did will not be interred with his bones, because his children will preserve his memory through their lives and work, and gift it to their children.
DISCLAIMER : Views expressed above are the author's own.
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