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सेकुलरिज़्म की मेरी परिभाषा है- ‘इंडिया फर्स्ट’- मोदी Interview with Shahid Siddiqui

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Monday, May 5, 2014
सेकुलरिज़्म की मेरी परिभाषा है- ‘इंडिया फर्स्ट’- मोदी
By Vivek Shukla on May 5, 2014 
सेकुलरिज़्म की मेरी परिभाषा है- 'इंडिया फर्स्ट'- मोदी
भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने वरिष्ठ पत्रकार और नई दुनिया के संपादक शाहिद सिद्धिकी को दिए एक खास इंटरव्यू में तमाम सवालों के जवाब दिए। उसी इंटरव्यू के अंश प्रस्तुत है-
शाहिद सिद्धिकी आप धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या किस रूप में करते हैं? नरेन्द्र मोदी सेकुलरिज़्म की मेरी परिभाषा है- ‘इंडिया फर्स्ट’। मैं सर्वपंथ समभाव में यकीन करता हूं। मेरे सपनों का भारत एक ऐसा भारत है जहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख एवं ईसाई सब आपस में मिलकर शांति एवं भाईचारे से रहें। मेरा मार्ग है- ‘सबका साथ, सबका विकास’।हमारा देश तभी तरक्की करेगा जब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सारे लोग आगे बढ़ेंगे।
  एसएस आप संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द को रखेंगे या हटा देंगे ? नमो भारत सरकार संविधान के मुताबिक चलती है। सरकार के लिए एक ही पवित्र ग्रंथ होता है और वह है भारत का संविधान। मैं संविधान में दी गई हर व्याख्या, हर व्यवस्था का सम्मान करता हूं।1947 में जब देश आज़ाद हुआ तब स्वतंत्र भारत को भारत गणराज्य बनाने के लिए हमारे नीति-निर्माताओं ने भारत के संविधान की रचना की। दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान बनाते वक्त हमारे दूरदर्शी नेताओं, विद्वानों और अग्रणियों ने हर उस पहलू पर गहरा मंथन किया जो देश की एकता और अखंडता के लिए जरूरी था और जो देश के सभी पंथों, संप्रदायों और जातियों के लोगों को एक समान अधिकार देना सुनिश्चित करता था। बराबरी का यह जज़्बा हमारे राष्ट्र ग्रंथ यानी संविधान में शीशे की तरह साफ नज़र आता है। बावजूद इसके, हमारे संविधान में कहीं भी सेकुलरिज़्म शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था, तो क्या इस मसले को लेकर कोई हमारे संविधान निर्माताओं की नीयत पर शक कर सकता है? हर्गिज़ नहीं। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि, जिस देश ने सभी पंथों, जातियों, नस्लों के लोगों का हमेशा दिल खोलकर स्वागत किया हो, जहां हर पंथ को मानने और अपनाने की स्वतंत्रता हो, उसे भला ऐसे आयातित शब्द की जरूरत ही कहां थी..!!! भारत की सभ्यता, संस्कृति, इतिहास और विचारधारा हमेशा से सहिष्णु रही है। सर्वपंथ समभाव, तमाम मज़हबों के आदर का भाव तो इस देश के डीएनए में रचा-बसा है।एक दौर था, जब दुकानों पर देसी घी की बिक्री बड़ी सरलता और निर्विवाद रूप से होती थी। पचास-साठ साल पहले के उस दौर में मिलावट के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। लिहाज़ा, घी की शुद्धता को प्रचारित करने की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन आज हम देखते हैं कि दुकानों के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘शुद्ध घी’ लिखा होता है। ताकि ख़रीदार को भरोसा हो सके की घी वाकई में शुद्ध है। आशय यह कि, जब कोई चीज़ स्वाभाविक रूप से अपने मूल स्वरूप में होती है तो उसके प्रचार की जरूरत ही नहीं रहती। ठीक इसी तरह हमारे देश में सेकुलरिज़्म शब्द के इस्तेमाल का कभी चलन ही नहीं रहा।
मेरी दृष्टि से सेकुलरिज़्म संविधान का हिस्सा ही नहीं बल्कि हजारों वर्ष पुरानी हमारी सभ्यता और संस्कृति की वह अभूतपूर्व पहचान है, जो हमारे देश को दुनिया में बाकी मुल्कों से अलग खड़ा करती है। पश्चिम से आयातित यह शब्द आज़ादी के बाद से हमारे मुल्क के रहनुमाओं का पसंदीदा शब्द बन गया है। हालांकि, इस शब्द के जरिए अपने सियासी हित साधने वाले सियासतदानों को शायद इस बात का ज्ञान नहीं कि भारत तो हमेशा से ही पंथनिरपेक्षता के मार्ग पर चलता रहा है। किसी पंथ विशेष को तरजीह दिए जाने की हिमायत यहां किसी ने नहीं की है। मेरे लिए वो एक आस्था का विषय है न कि महज एक खोखला शब्द, जिसका इस्तेमाल सिर्फ मुस्लिमों के वोट हासिल करने के लिए किया जाता है। इस शब्द को ढाल बनाकर सियासत करने की शुरुआत कांग्रेस ने बड़ी चतुराई से की।
मौजूदा समय में हम देख रहे हैं कि भारतीय राजनीति इसी शब्द के इर्द-गिर्द घूम रही है। यह लोगों को गुमराह करने की बात है, उन्हें भयभीत करने की बात है, गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी जैसे असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की बात है। सेकुलरिज़्म के नाम पर सारे दल अल्पसंख्यकों को डरा रहे हैं, उन्हें वोट बैंक की शक्ल प्रदान कर रहे हैं।
  एसएस आप धर्म के आधार पर किसी को विशेष लाभ देने का विरोध करते हैं। तो क्या माना जाए कि आप अल्पसंख्यकों के हित में शुरू की गई यूपीए सरकार की योजनाओं और स्कालरशिप को खत्म कर देंगे  ?
  नमो मेरा मानना है कि हमें सर्वसमावेशक विकास करने की आवश्यकता है। हमें उन सभी लोगों के लिए ख़ास ध्यान देना पड़ेगा जो विकास की दौड़ में पीछे छूट गए हैं। वर्तमान व्यवस्थाएं तो जारी रहेंगी ही। इसके अलावा मुस्लिमों में शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देने का प्रयास हम करेंगे ताकि उन्हें भी रोजगार के पर्याप्त अवसर मिल सकें।हमारा मानना है कि अशिक्षा किसी भी कौम के पिछड़ेपन की प्रमुख वजह होती है। हम अल्पसंख्यकों के हाथ में शिक्षा की ताकत देंगे। युवाओं का कौशल्य वर्द्धन कर उन्हें सक्षम बनाएंगे। कंप्यूटर शिक्षा के लिए उन्हें प्रोत्साहित करेंगे। इस तरह घिसी-पिटी सियासत से ऊपर उठकर हम मुस्लिमों को विकास की राह पर लाने का संनिष्ठ प्रयास करेंगे।
  एसएस मैं आपसे जानना चाहता हूं कि क्या देश में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की जरूरत है ?  नमो देखिए, आज़ादी के बाद नई सरकार के गठन के वक्त देश के नीति-निर्माताओं और नेताओं ने विभिन्न मंत्रालयों का गठन किया, लेकिन इसमें अल्पसंख्यकों के लिए किसी ख़ास मंत्रालय की बात नहीं उठी और न ही ऐसा किया गया। वजह साफ थी कि, भारत में हर पंथ, हर जाति के नागरिक को समान दर्जा हासिल था। पंथ विशेष को आधार बनाकर नागरिकों को बांटने की न तो हमारी परंपरा थी और न ही ऐसी कोई सोच थी। यही वजह थी कि, आज़ादी के बाद हमारे देश का कोई राष्ट्रधर्म घोषित नहीं किया गया, जैसा कि भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक देश के रूप में घोषित कर दिया था। इसके उलट, हमारे तत्कालीन नेताओं ने सभी पंथों को एक समान दर्जा दिया तथा सभी का सम्मान सुनिश्चित किया।परन्तु आगे चलकर कई बरसों बाद नेताओं ने अल्पसंख्यकों के लिए अलहदा अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन किया। हालांकि, इसके पीछे उनकी मंशा क्या थी, यह तो वे ही जाने। क्योंकि, अल्पसंख्यकों की बेहतरी और सुधार ही अगर इसकी वजह होती तो आज अल्पसंख्यक समाज अपनी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक दुर्दशा को लेकर यूं परेशान न होता। इस मंत्रालय के गठन के जरिए अल्पसंख्यकों के साथ वादे तो बहुत किए गए, उन्हें ख़्वाब तो बहुत दिखाए गए, परन्तु जमीनी स्तर पर नतीजा शून्य ही रहा।हालांकि, मैं इस मसले को विवाद का विषय नहीं बनाना चाहता। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि महज मंत्रालय या आयोग बनाने से बात नहीं बनती, काम करने की नेकनीयती और जज़्बा भी उतना ही जरूरी है। अफ़सोस इस बात का है कि हमारे राजनेताओं ने पंथ, संप्रदाय और जाति के चश्मे से देखते हुए आम भारतीयों के बीच एक गहरी लकीर खींच दी है। मेरा मानना है कि किसी पंथ विशेष को ख़ुश करने के लिए महज प्रतीकात्मक कदम उठाने की बजाय समाज के लिए ठोस कार्य करने की जरूरत है।
कह सकते हैं कि इस मसले पर बेहतर तो यही होगा कि अल्पसंख्यक समाज ख़ुद इस पर चर्चा करे।
  एसएस क्या आप अल्पसंख्यक आयोग और मिनोरिटी फाइनेंस डवलपमेंट कॉरपोरेशन जैसे संस्थानों पर ताला लगा देंगे ? नमो जो संवैधानिक एवं वैधानिक संस्थाएं हैं उन्हें दूर करने की नहीं बल्कि सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। जरूरत इस बात की है कि इन संस्थाओं का क्षमतावर्धन किया जाए/उन्हें ताकतवर बनाया जाए ताकि वे ठोस काम कर सके, न कि सांकेतिक कदम उठाने वाली वर्तमान व्यवस्था को जारी रखा जाए।इस तरह के सवाल उठाने वालों को बताना चाहूंगा कि गुजरात में हमारी सरकार के पिछले बारह वर्षों के कार्यकाल के दौरान अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम दे रहा है।
  एसएस मैं आपसे जानना चाहता हूं कि आप अल्पसंख्यकों के,खासतौर पर मुसलमानों के लिए कौन से कदम उठाएंगे ताकि उऩ्हें इस बात का अहसास हो कि वे एमडीए सरकार में सुरक्षित है। नमो ऐसा पहली बार नहीं है कि एनडीए की सरकार आ रही है। इससे पूर्व केन्द्र में एनडीए की सरकार ने लगातार छह सालों तक शासन किया है। वह भी बिना किसी भेदभाव या भय पैदा किए। ठीक इसी तरह देश के कई राज्यों में पिछले 15-20 बरसों से भाजपा एवं साथी दलों की सरकारें सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। दुर्भाग्य की बात है कि कुछ तथाकथित सेकुलर कहलाने वाले विरोधी दल भाजपा को लेकर अल्पसंख्यकों के मन में एक अज्ञात खौफ पैदा करने का घृणास्पद कार्य कर रहे हैं। लेकिन यह दुष्प्रचार अब ज्यादा चलने वाला नहीं है। मुस्लिम समाज अब जागरूक हो चुका है। सियासी ड्रामे को वह न सिर्फ देख रहा है बल्कि उसके पीछे की साजिश को भी वह समझने लगा है।
  एसएस आपको लेकर ये भी प्रचार हो रहा है कि आप भारत को आरएसएस के दबाव में हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देंगे। आप इस मसले पर अपनी राय साफ कीजिए ?  नमो ये भी मेरे विरोधियों का दुष्प्रचार ही है। मुस्लिमों को डराकर, खौफ पैदा कर उन्हें भयभीत किया जा रहा है। भारत गणराज्य संविधान की भावना के मुताबिक संचालित होता है और हमारा संविधान हरेक पंथ और हरेक जाति को समान अधिकार प्रदान करता है। किसी पंथ विशेष को विशेष दर्जा प्रदान करना संविधान की मूल भावना के ही खिलाफ है। लिहाजा, यह साफ होना चाहिए कि सरकार किसी एक पंथ के लिए या उसके हिसाब से नहीं चलेगी। मेरे लिए 125 करोड़ नागरिक सिर्फ और सिर्फ भारतीय ही हैं।
  एसएस बिहार से भाजपा के एक नेता का कहना है कि जो मोदी के खिलाफ हैं,उन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाएगा। आपका इस संबंध में क्या कहना है ?  नमो यह बयान निहायत ही गैर जिम्मेदाराना है और मैं इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता। यह बयान निश्चित ही निंदनीय है। मेरा मानना है कि भाजपा के शुभचिंतकों को इस प्रकार की बयानबाजी से बचना चाहिए। मैं मीडिया से भी आग्रह करना चाहता हूं कि वह इस किस्म के बयानों को ज्यादा तवज्जो न दे।
  प्रश्न 9 Your campaign is on development but some leaders of BJP are speaking the language of hate and confrontation. Do you agree with them? उत्तर मीडिया का यह आंकलन भाजपा के साथ अन्यायपूर्ण कहा जाएगा। भाजपा आज भी विकास के एजेंडे के साथ चुनावी मैदान में डटी हुई है। सुशासन पर सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही बात कर रही है। यह जरूर है कि स्थानीय स्तर पर कुछ छोटे नेता एवं कार्यकर्ताओं की ज़ुबानें फिसली हैं। लेकिन यह भी काबिले गौर है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कभी भी घृणा फैलाने वाले तथा टकराव पैदा करने वाले बयान नहीं दिए। इसके उलट विरोधी दलों के बड़े नेता लगातार अपने जहरीले बयानों से समाज में एक किस्म की खाई पैदा कर रहे हैं। वे लोगों को भाजपा के ख़िलाफ न सिर्फ गुमराह कर रहे हैं बल्कि भड़का भी रहे हैं। जहां तक मीडिया का सवाल है तो यह कहना गलत न होगा कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के कुछ ख़ास लोगों ने भाजपा के प्रति दुर्भावना से ग्रस्त होकर इनके छोटे नेताओं के बयानों को तो जमकर उछाला लेकिन वे यह बताना भूल गए कि इस पूरी चुनावी कवायद के दौरान भाजपा का शीर्ष नेतृत्व निहायत ही संयमित भाषा का प्रयोग कर रहा है।
  एसएस हमारा भारतीय समाज जाति-धर्म के कारण पैदा होने वाले विवादों को लंबे समय से झेल रहा है। आप इसे रोकने के किया उपाय करेंगे?   नमो मैं आपकी इस बात से सहमत हूं। पंथ और जाति को लेकर कट्टरता ने हिन्दुस्तानी समाज को बांटने का ही काम किया है। और इसलिए ही पहली बार किसी बड़ी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में Interfaith Consultative Commission- अंतर्धर्म परामर्श परिषद बनाने की बात कही है। ये बहुत अहम है और ये हमारे समाज में विभिन्न संप्रदायों के बीच शांति, सौहार्द और सामंजस्य स्थापित करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। मुझे लगता है कि सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए दो स्तर पर कार्रवाई आवश्यक है। पहली, सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ Zero Tolerance. समाज को बांटने व पंथ के नाम पर आपसी सौहार्द व अमन का माहौल बिगाड़ने वालों के खिलाफ सख्ती से पेश आया जाएगा। दूसरी बात, संवाद स्थापित करना। भारत जैसे बहुधर्मी, बहुभाषी और बहुजातीय देश में नागरिकों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए आपसी संवाद की नई परंपरा स्थापित की जाएगी। मतभेदों और मनमुटावों का निराकरण करने के लिए संवाद बेहद जरूरी है। ऐसे किसी भी विषय पर सरकारी एक्शन उतना कारगर नहीं हो सकता जितना की नागरिक समाज का आपसी संवाद। बहरहाल, सरकार की कोशिश होगी की समाज में अमन एवं भाईचारा स्थापित करने के लिए इस तरह के ठोस कदम उठाए जाएं ताकि विविधता में एकता की देश की भावना को वास्तव में चरितार्थ किया जा सके और देश में गंगा-जमुनी तहजीब को बरकरार रखा जा सके।
  एसएस हम कश्मीरी जनता के भारतीय लोकतंत्र तथा संविधान में विश्वास को किस तरह से बहाल कर सकते है?   नमो कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए मेरा मानना है कि वहां के लोगों की भारत के संविधान में उतनी ही आस्था है कि जितनी देश के अन्य राज्यों के लोगों की है। इसी तरह, भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार उन्हें भी उतने ही प्राप्त हैं, जितने देश के अन्य नागरिकों को।कश्मीर समस्या बरसों से देश के लिए बड़ी चुनौती रही है। आज की स्थिति में दो मुख्य बातें हैं जिस पर कार्य करने की दरकार है। सबसे अहम है कश्मीरी जनता का दिल जीतना। शुरुआत से ही भ्रामक स्थिति में जी रही कश्मीरी जनता को यकीन दिलाना होगा कि समूचा देश उनके साथ खड़ा है, कश्मीर की तरक्की और अमन के लिए हिन्दुस्तान नेकनीयती के साथ प्रयासरत है। दूसरी बात, अविश्वास की खाई को पाटना है। कश्मीरी जनता के मन में जो भी अविश्वास है उसे दूर करने के लिए ईमानदार प्रयास किए जाएंगे। इसके अंतर्गत कुशासन, बेरोजगारी और गरीबी के आलम में जी रहे कश्मीरियों को सुशासन की छांव में सुरक्षा के अहसास के साथ विकास में साथीदार बनाया जाएगा। राज्य में व्याप्त बेरोजगारी से निबटने के लिए ख़ास कदम उठाए जाएंगे। इसके अलावा कश्मीर में व्यापार एवं पर्यटन को एक नई ऊंचाई पर ले जाने की मंशा भी हमारी पार्टी की है। कुल मिलाकर, वाजपेयी जी की कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की नीति पर चलते हुए राज्य को सचमुच ही इस पृथ्वी का स्वर्ग बनाने में हम हरचंद प्रयास करेंगे।
  एसएस एक राय ये भी है कि आपकी कठोर सोच के कारण भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध कटु हो जाएँगे। आप पाकिस्तान से संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में किस तरह के कदम उठाएंगे?  नमो इसे कल्पना की उड़ान से ज्यादा और क्या कहूं? भारत-पाकिस्तान का एक साझा इतिहास रहा है, दोनों देशों की साझी विरासत है। समान भौगोलिक स्थिति, समान खान-पान, पहनावा और भाषा तो है ही, दोनों देशों की समस्याएं भी करीब-करीब एक ही हैं। गरीबी से दोनों ही देश जूझ रहे हैं। आज़ादी के बाद से ही दोनों की मुश्किलें भी एक जैसी रही हैं। समाज का एक बड़ा तबका गरीबी की वजह से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेकों समस्याओं से दो-चार हो रहा है। लिहाज़ा, होना तो यह चाहिए कि दोनों मुल्क पहले तरक्की की राह में सबसे बड़ी बाधा समान अपनी गरीबी से लड़ें। हमारा प्रयास होगा कि न सिर्फ पाकिस्तान वरन तमाम पड़ोसी मुल्कों के साथ स्वस्थ एवं मजबूत संबंध बनाएं।
  एसएस कुछ लोग उर्दू को विदेशी भाषा कहते हैं। पर आपने उर्दू में अपना ब्लाग शुरू किया। आप देश में उर्दू को उसका दिलवाने के लिए किस तरह के कदम उठाएंगे … नमो उर्दू एक बेहद मीठी ज़ुबां है। भारत में जन्मी इस भाषा ने सदियों से हमारे देश को एक सूत्र में पिरोया है। पंथ और जाति की दीवारों से परे उर्दू आम हिन्दुस्तानी की भाषा बनी है। हमारी फिल्मों और गीतों में भी इस ज़ुबां का बड़ी सरलता और प्रमुखता से उपयोग किया जाता है। कहते हैं मोहब्बत की अभिव्यक्ति की जितनी सरलता, सादगी और आकर्षण उर्दू भाषा में है, उतनी किसी और में नहीं। उर्दू साहित्य ने कई अनमोल रत्न इस देश को दिए हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है। ग़ालिब से लेकर राहत इंदौरी तक उर्दू साहित्य की यात्रा अनेक मुश्किलों के बावजूद अपनी लय को बनाए हुए है।इन्हीं सब वजहों से मैंने भी उर्दू में अपना ब्लॉग बनाने का फैसला किया। ताकि मुल्क के करोड़ों उर्दू प्रेमियों से सीधे ही मुख़ातिब हो सकुं। एक वजह और भी है, अक्सर लोग मोदी के बारे में दूसरे लोगों या माध्यमों से सुनकर अपनी राय बना लेते हैं। मैं चाहता हूं कि अब इस ब्लॉग के जरिए वे मुझे बख़ूबी जानें, पहचानें और मेरे कार्यों का स्वयं आंकलन करें। रही बात उर्दू के विकास की तो कहना चाहूंगा कि, उर्दू के विकास के लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध रहेगी।
  एसएस आपने कहा कि टोपी नहीं पहनूंगा मगर किसी की टोपी भी नहीं उठलने दूंगा। इस बात का क्या मतलब है ? नमो मेरा मानना है कि मुसलमान की टोपी के साथ राजनीति बंद होनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति की आस्था के साथ राजनीति करना निंदनीय है। मेरा तो ये मानना है कि हर मज़हब का सम्मान होना चाहिए, हर व्यक्ति का सम्मान होना चाहिए। इसलिए ही मैं आस्था के विषय पर राजनीति करने वालों के सख़्त खिलाफ हूं।मुसलमान की आस्था के प्रतीक को सियासत से परे रखा जाना चाहिए। न तो उनका अपमान हो और न ही उनके साथ राजनीति हो। मुसलमान की टोपी इबाबत के लिए है, सियासत के लिए नहीं
  एसएस क्या आपके मन में मुसलमानों को लेकर कटुता है क्योंकि वे कुल मिलाकर आपको वोट नहीं दे रहे ? नमो सर्वप्रथम तो मैं कुछ विशेषज्ञों द्वारा किए जाने वाले इस किस्म के विश्लेषणों पर ही सवाल उठाता हूं। यह कहना कि मुस्लिम भाजपा को वोट नहीं देते, सरासर गलत है। आज भाजपा को मिल रहा अपार जनसमर्थन इस बात की तस्दीक करता है कि सभी पंथ एवं संप्रदाय के लोग उसके साथ खड़े हैं। कड़वाहट का तो प्रश्न ही नहीं उठता। इससे पूर्व विधानसभा चुनावों के नतीजों ने भी इसे साबित किया था कि बड़ी तादाद में मुसलमान भाजपा के साथ जुड़े हैं। यह दुष्प्रचार अब बंद होना चाहिए। एक कौम विशेष को गुमराह करने का खेल अब ख़त्म होना चाहिए।पहले भी यह कह चुका हूं कि हमारी सरकार बनी तो उनके लिए तो  कार्य करेगी जिन्होंने हमें वोट दिया. परन्तु उनके लिए भी उतना ही कार्य  करेगी जिन्होंने विरोधियों को वोट दिया और जिन्होंने वोट ही नहीं दिया।हम 125 करोड़ भारतीयों में पंथ, जाति एवं संप्रदाय के अलावा सियासी समर्थक या विरोधी होने के आधार पर भेदभाव नहीं करते।
  एसएस आपकी समान नागरिक कानून पर क्या सोच है? नमो संविधान के अनुच्छेद 44 में स्पष्ट लिखा है कि सरकार देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए तमाम प्रयास करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे लेकर सरकार की विफलता पर टिप्पणी की है। हम देख सकते हैं कि गोवा जैसे अल्पसंख्यक बहुल राज्य में समान नागरिक संहिता सफलतापूर्वक लागू है और वहां के नागरिक इसके प्रावधानों के जरिए संरक्षण पा रहे हैं।दूसरी अहम बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि समान नागरिक संहिता लागू करने का अर्थ यह नहीं है कि देश के सभी नागरिकों पर हिंदू कोड लागू किया जाए। मेरा मानना है कि हिंदू कोड के भी कई प्रावधान हैं जो आज के समयानुकूल नहीं हैं, उसमें भी सुधार की जरूरत है।21वीं सदी में 18वीं सदी के कानून को ढोना गैरजरूरी जान पड़ता है। आज के दौर में इसकी प्रासंगिकता भी नहीं है और यह ज्यादातर लोगों को स्वीकार्य भी नहीं है।
इस चर्चा का अहम पहलू महिलाओं के अधिकारों की बात भी है। आज के आधुनिक युग में यह जरूरी है कि महिलाओं को बराबरी, स्वतंत्रता, जीवन के निर्णय करने का अधिकार मिले। उनकी इन भावनाओं की अनदेखी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। बाकी चीज़ों में जब हम ज़माने के साथ कदमताल कर रहे हैं तो ऐसे अहम मामलों में भी 21वीं सदी की महक महसूस होनी चाहिए।
मैं समझता हूं कि सारे बुद्धिजीवी और समाज के अग्रणी इस विषय पर चर्चा-परामर्श करें।
इस सारी कवायद में महत्वूपूर्ण यह है कि किसी एक वर्ग या व्यक्ति के विचार और परंपरा दूसरे वर्ग या व्यक्ति पर न थोपे जाएं।
http://m.niticentral.com/hindi/2014/05/05/india-first-is-the-definition-of-secularism-for-modi-220018.html

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